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किस्सा बूढ़े और उसकी हिरनी का

वृद्ध बोला, 'हे दैत्यराज, अब ध्यान देकर मेरा वृत्तांत सुनें। यह हिरनी मेरे चचा की बेटी और मेरी पत्नी है। जब यह बारह वर्ष की थी तो इसके साथ मेरा विवाह हुआ। यह अत्यंत पतिव्रता थी और मेरे प्रत्येक आदेश का पालन करती थी। किंतु जब विवाह को तीस वर्ष हो गए और इससे कोई संतान नहीं हुई तो मैंने एक दासी मोल ले ली क्योंकि मुझे संतान की अति तीव्र अभिलाषा थी। कुछ समय बाद दासी से एक पुत्र का जन्म हुआ। बच्चा पैदा होने पर मेरी पत्नी उस बच्चे और उसकी माता से अत्यंत द्वेष रखने लगी। मुझे इस बात का अति खेद है कि मुझे अपनी पत्नी के विद्वेष का हाल बहुत दिन बाद मालूम हुआ। 'संयोगवश मुझे एक अन्य देश को जाना पड़ा। मैंने अपनी पत्नी से जोर देकर कहा कि मेरे पीछे इन दोनों की अच्छी तरह देखभाल करना और इनके आराम-तकलीफ का खयाल करना। भगवान चाहेगा तो मैं एक वर्ष में लौट आऊँगा। 'मेरी स्त्री ने मेरे जाने के बाद उन दोनों से दुश्मनी रखना शुरू कर दिया। वह जादू-टोना भी सीखने लगी थी। मेरे जाने के बाद उस दुष्ट ने अपने जादू से मेरे बच्चे को बछड़ा बना दिया और उसे मेरे नौकर ग्वाले के सुपुर्द कर दिया कि अपन

(पंचतंत्र की कहानी)सच्चे मित्र

बहुत समय पहले की बात हैं। एक सुदंर हरे-भरे वन में चार मित्र रहते थे। उनमें से एक था चूहा, दूसरा कौआ, तीसरा हिरण और चौथा कछुआ। अलग-अलगजाति के होने के बावजूद उनमें बहुत घनिष्टता थी। चारों एक-दूसरे पर जान छिडकते थे। चारों घुल-मिलकर रहते, खूब बातें करते और खेलते। वन में एक निर्मल जल का सरोवर था, जिसमें वह कछुआ रहता था। सरोवर के तट के पास ही एक जामुन का बडा पेड था। उसी पर बने अपने घोंसले में कौवा रहता था। पेड के नीचे जमीन में बिल बनाकर चूहा रहता था और निकट ही घनी झाडियों में ही हिरण का बसेरा था।दिन को कछुआ तट के रेत में धूप सेकता रहता पानी में डुबकियां लगाता। बाकी तिन मित्र भोजन की तलाश में निकल पडते और दूर तक घूमकर सूर्यास्त के समय लौट आते। चारों मित्र इकठ्ठे होते एक दूसरे के गले लगते, खेलते और धमा-चौकडी मचाते। एक दिन शाम को चूहा और कौवा तो लौट आए, परन्तु हिरण नहीं लौटा। तीनो मित्र बैठकर उसकी राह देखने लगे। उनका मन खेलने को भी नहीं हुआ। कछुआ भर्राए गले से बोला “वह तो रोज तुम दोनों से भी पहले लौट आता था। आज पता नहीं, क्या बात हो गई, जो अब तक नहीं आया। मेरा तो दिल डूबा जा रहा हैं। चूहे

धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का

एक बार कक्षा दस की हिंदी शिक्षिका अपने छात्र को मुहावरे सिखा रही थी। तभी कक्षा एक मुहावरे पर आ पहुँची “धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का ”, इसका अर्थ किसी भी छात्र को समझ नहीं आ रहा था। इसीलिए अपने छात्र को और अच्छी तरह से समझाने के लिए शिक्षिका ने अपने छात्र को एक कहानी के रूप में उदाहरण देना उचित समझा। उन्होंने अपने छात्र को कहानी कहना शुरू किया, ” कई साल पहले सज्जनपुर नामक नगर में राजू नाम का लड़का रहता था, वह एक बहुत ही अच्छा क्रिकेटर था। वह इतना अच्छा खिलाड़ी था कि उसमे भारतीय क्रिकेट टीम में होने की क्षमता थी। वह क्रिकेट तो खेलता पर उसे दूसरो के कामों में दखल अन्दाजी करना बहुत पसंद था। उसका मन दृढ़ नहीं था जो दूसरे लोग करते थे वह वही करता था। यह देखकर उसकी माँ ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की कि यह आदत उसे जीवन में कितनी भारी पड़ सकती है पर वह नहीं समझा। समय बीतता गया और उसका अपने काम के बजाय दूसरो के काम में दखल अन्दाजी करने की आदत ज्यादा हो गयी। जभी उससे क्रिकेट का अभ्यास होता था तभी उसके दूसरे दोस्तों को अलग खेलो का अभ्यास रहता था। उसका मन चंचल होने के कारण वह क्रिकेट के अभ्यास