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जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

(पंचतंत्र की कहानी)एकता का बल

एक समय की बात हैं कि कबूतरों का एक दल आसमान में भोजन की तलाश में उडता हुआ जा रहा था। गलती से वह दल भटककर ऐसे प्रदेश के ऊपर से गुजरा, जहां भयंकर अकाल पडा था। कबूतरों का सरदार चिंतित था। कबूतरों के शरीर की शक्ति समाप्त होती जा रही थी। शीघ्र ही कुछ दाना मिलना जरुरी था। दल का युवा कबूतर सबसे नीचे उड रहा था। भोजन नजर आने पर उसे ही बाकी दल को सुचित करना था। बहुत समय उडने के बाद कहीं वह सूखाग्रस्त क्षेत्र से बाहर आया। नीचे हरियाली नजर आने लगी तो भोजन मिलने की उम्मीद बनी। युवा कबूतर और नीचे उडान भरने लगा। तभी उसे नीचे खेत में बहुत सारा अन्न बिखरा नजर आया “चाचा, नीचे एक खेत में बहुत सारा दाना बिखरा पडा हैं। हम सबका पेट भर जाएगा।’ सरदार ने सूचना पाते ही कबूतरों को नीचे उतरकर खेत में बिखरा दाना चुनने का आदेश दिया। सारा दल नीचे उतरा और दाना चुनने लगा। वास्तव में वह दाना पक्षी पकडने वाले एक बहलिए ने बिखेर रखा था। ऊपर पेड पर तना था उसका जाल। जैसे ही कबूतर दल दाना चुगने लगा, जाल उन पर आ गिरा। सारे कबूतर फंस गए। कबूतरों के सरदार ने माथा पीटा “ओह! यह तो हमें फंसाने के लिए फैलाया गया जाल था। भूख...

जो कुआँ खोदता है वही गिरता है(कहावतों की कहानियाँ)

एक बादशाह के महल की चहारदीवारी के अन्दर एक वजीर और एक कारिंदा रहता था। वजीर और कारिंदे के पुत्र में गहरी दोस्ती थी। हम उम्र होने के कारण दोनों एक साथ पढ़ते, खेलते थे। वजीर के कहने पर कारिंदे का लड़का उसके सब काम कर देता था। वह वजीर को चाचा कहकर पुकारता था। बादशाह कारिंदे के पुत्र को बहुत प्रेम करता था। बादशाह के कोई संतान नहीं थी। इसलिए वे कारिंदे के पुत्र को अपने पुत्र के समान ही समझते थे। बादशाह ने उसे महल और दरबार में आने-जाने की पूरी छूट दे रखी थी। कारिंदे के पुत्र के प्रति बादशाह का प्रेम देखकर वजीर को बहुत ईर्ष्या होती थी। वजीर चाहता था कि बादशाह केवल उसके पुत्र को ही प्रेम करें। यदि बादशाह ने उसके पुत्र को गोद ले लिया तो बादशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र ही राजगद्दी पर बैठेगा। वजीर की इच्छा के विपरीत बादशाह का प्रेम कारिंदे के पुत्र के प्रति बढ़ता ही गया। बादशाह वजीर के पुत्र को जरा भी पसंद नहीं करते थे। इसलिए वजीर कारिंदे और उसके पुत्र से मन-ही-मन ईर्ष्या करने लगा। वजीर ने कारिंदे के पुत्र को मारने का निश्चय किया। वजीर ने कारिंदे के पुत्र को रुमाल और पैसे देकर गोश्त लाने क...

(भूत की सच्ची कहानी)रात के अंधेरे में डरता सन्नाटों का शोर

जैसलमेर शहर से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित एक ऐसा गांव जिसमें अब कोई रहना नहीं चाहता. लोग कहते हैं उस गांव में भूतों और आत्माओं का डेरा है. कहा तो यह भी जाता है कि उस गांव में फैली दहशत के पीछे जो कहानी है वह उससे भी ज्यादा भयानक और खतरनाक है. जिसकी बुरी नजर की वजह से जो भी उस गांव में आता है वह अकाल मौत का शिकार बन जाता है. यूं तो हम सभी ने कभी ना कभी भूत-प्रेत पिशाचों से जुड़ी कहानियों को पढ़ा या सुना होगा. हो सकता है कुछ ने ऐसी पारलौकिक शक्तियों का सामना भी किया हो लेकिन जो कहानी हम यहां आपको सुनाने जा रहे हैं वह थोड़ी अविश्वस्नीय जरूर है लेकिन स्थानीय लोगों के लिए वह एक बेहद खौफनाक सच है जिसका सामना उन्हें अकसर या कहें शायद रोज ही करना पड़ता है. मरने के बाद भी जिन्दा है वो कुलधरा, जैसलमेर से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित एक गांव अपनी दहशत के लिए आसपास कुख्यात बन गया है. आपको यह बात तो पता ही होगी कि जिन स्थानों को पारलौकिक ताकते अपने कब्जे में ले लेती हैं उन स्थानों पर बसने वाले लोग या तो स्वयं उस स्थान को छोड़ कर चले जाते हैं और अगर नहीं जाते तो उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है. कु...

(पंचतंत्र की कहानी)अक्लमंद हंस

एक बहुत बडा विशाल पेड था। उस पर बीसीयों हंस रहते थे। उनमें एक बहुत स्याना हंस था,बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी। सब उसका आदर करते ‘ताऊ’ कहकर बुलाते थे। एक दिन उसने एक नन्ही-सी बेल को पेड के तने पर बहुत नीचे लिपटते पाया। ताऊ ने दूसरे हंसों को बुलाकर कहा “देखो,इस बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सबको मौत के मुंह में ले जाएगी।” एक युवा हंस हंसते हुए बोला “ताऊ, यह छोटी-सी बेल हमें कैसे मौत के मुंह में ले जाएगी?” स्याने हंस ने समझाया “आज यह तुम्हें छोटी-सी लग रही हैं। धीरे-धीरे यह पेड के सारे तने को लपेटा मारकर ऊपर तक आएगी। फिर बेल का तना मोटा होने लगेगा और पेड से चिपक जाएगा, तब नीचे से ऊपर तक पेड पर चढने के लिए सीढी बन जाएगी। कोई भी शिकारी सीढी के सहारे चढकर हम तक पहुंच जाएगा और हम मारे जाएंगे।” दूसरे हंस को यकीन न आया “एक छोटी सी बेल कैसे सीढी बनेगी?” तीसरा हंस बोला “ताऊ, तु तो एक छोटी-सी बेल को खींचकर ज्यादा ही लम्बा कर रहा है।” एक हंस बडबडाया “यह ताऊ अपनी अक्ल का रौब डालने के लिए अंट-शंट कहानी बना रहा हैं।” इस प्रकार किसी दूसरे हंस ने ताऊ की बात को गंभीरता से नहीं लिया। इतनी दूर तक देख प...

शिव पार्वती का विवाह

जब सती के खुद को योगाग्रि में भस्म कर लेने का समाचार शिवजी के पास पहुंचा। तब शिवजी ने वीरभद्र को भेजा। उन्होंने वहां जाकर यज्ञ विध्वंस कर डाला और सब देवताओं को यथोचित फल दिया। सती ने मरते समय शिव से यह वर मांगा कि हर जन्म में आप ही मेरे पति हों। इसी कारण उन्होंने हिमाचल के घर जाकर पार्वती का जन्म लिया। जब से पार्वती हिमाचल के घर में जन्म तब से उनके घर में सुख और सम्पतियां छा गई। पार्वती जी के आने से पर्वत शोभायमान हो गया। जब नारद जी ने ये सब समाचार सुने तो वे हिमाचल पहुंचे। वहां पहुंचकर वे हिमाचल से मिले और हंसकर बोले तुम्हारी कन्या गुणों की खान है। यह स्वभाव से ही सुन्दर, सुशील और शांत है। यह कन्या सुलक्षणों से सम्पन्न है। यह अपने पति को प्यारी होगी।   अब इसमें जो दो चार अवगुण है वे भी सुन लो। गुणहीन, मानहीन, माता-पिता विहीन, उदासीन, लापरवाह। इसका पति नंगा, योगी, जटाधारी और सांपों को गले में धारण करने वाला होगा।   यह बात सुनकर पार्वती के माता-पिता चिंतित हो गए। उन्होंने देवर्षि से इसका उपाय पूछा। तब नारद जी बोले जो दोष मैंने बताए मेरे अनुमान से वे सभी शिव में है। अगर शिवजी के साथ विव...

ऐसे हुई शिव की 51 शक्तिपीठों की स्थापना

ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति दक्ष की पुत्री सती से भगवान शिव का विवाह हुआ। कुछ समय बाद दक्ष को पूरे ब्रह्माण्ड का अधिपति बना दिया गया। इससे दक्ष में अभिमान आ गया। वह अपने आपको सर्वश्रेष्ठ समझने लगा। एक यज्ञ में भगवान शिव द्वारा खुद को प्रणाम न करने पर दक्ष ने उन्हें अनेक अपशब्द कहे। दक्ष ने शिव को शाप दिया कि उन्हें देव यज्ञ में उनका हिस्सा नहीं मिलेगा। यह सुनकर नंदी ने भी दक्ष को शाप दिया कि जिस मुंह से वह शिव निंदा कर रहा है वह बकरे का हो जाएगा। कुछ समय बाद दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया। उसमें सभी देवी-देवताओं को बुलाया गया पर अभिमानी दक्ष ने शिव को उस यज्ञ से बहिष्कृत कर दिया। किसी तरह सती को यह पता चला तो उन्होंने शिव से उस यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी। पहले तो शिव ने उन्हें समझाया पर जब वे नहीं मानीं तो उन्होंने सती को वहां जाने की अनुमति दे दी। सती अपने पिता के घर पहुंची तो दक्ष ने उनसे आंखें फेर लीं। सती यज्ञ में शिव का भाग न देखकर रूष्ट हो गईं और सभी को बुरा-भला कहने लगीं। यह सुनकर दक्ष ने भी शिव निंदा प्रारम्भ कर दी।यह सुनकर सती को बड़ा दुख हुआ और उन्होंने योगाग्रि...

तेनाली का प्रयोग

तेनाली की बुध्दिमानी व चतुराई के कारण सभी उसे बहुत प्यार करते थे। परन्तु राजगुरु उससे ईर्ष्या करते थे। राजगुरु के साथ कुछ चापलूस दरबारी भी थे, जो उनके विचारों से सहमत थे। एक दिन सभी ने मिलकर तेनाली को अपमानित करने के लिए एक योजना बनाई। अगले दिन दरबार में राजगुरु राजा कॄष्णदेव राय से बोले, “महाराज, मैंने सुना है कि तेनाली ने पारस पत्थर ब्नाने की विधा सीखी है। पारस पत्थर जादुई पत्थर है, जिससे लोहा भी सोना बन जाता है।” “यदि ऐसा है, तो राजा होने के नाते वह पत्थर प्रजा की भलाई के लिए मेरे पास होना चाहिए। इस विषय में मैं तेनाली से बात करुँगा।” “परन्तु महाराज!आप उससे यह मत कहना कि यह सूचना मैंने आपको दी है।” राजगुरु ने राजा से प्रार्थना करते हुए कहा। उस दिन तेनाली के दरबार में आने पर राजा ने उससे कहा, “तेनाली, मैंने सुना है कि तुम्हारे पास पारस है। तुमने लोहे को सोने में बदलकर बहुत धन इकट्ठा कर लिया है।” तेनाली बुद्धिमान तो था ही सो वह तुरन्त समझ गया कि किसी ने राजा को उसके विरुद्ध झूठी कहानी सुनाकर उसे फंसाने की कोशिश की है। इसलिए वह राजा को प्रसन्न करते हुए बोला, “जी महाराज, यह सत...

चोर चोरी से जाए हेरा फेरी से न जाये

एक जंगल की राह से एक जौहरी गुजर रहा था। देखा उसने राह में। एक कुम्हार अपने गधे के गले में एक बड़ा हीरा बांधकर चला आ रहा है। चकित हुआ। ये देखकर कि ये कितना मूर्ख है। क्या इसे पता नहीं है कि ये लाखों का हीरा है। और गधे के गले में सजाने के लिए बाँध रखा है। पूछा उसने कुम्हार से। सुनो ये पत्थर जो तुम गधे के गले में बांधे हो। इसके कितने पैसे लोगे ? कुम्हार ने कहा - महाराज ! इसके क्या दाम। पर चलो। आप इसके आठ आने दे दो। हमनें तो ऐसे ही बाँध दिया था कि गधे का गला सूना न लगे। बच्चों के लिए आठ आने की मिठाई गधे की ओर से ल जाएँगे। बच्चे भी खुश हो जायेंगे। और शायद गधा भी कि उसके गले का बोझ कम हो गया है।पर जौहरी तो जौहरी ही था। पक्का बनिया। उसे लोभ पकड़ गया। उसने कहा आठ आने तो थोड़े ज्यादा है। तू इसके चार आने ले ले। कुम्हार भी थोड़ा झक्की था। वह ज़िद पकड़ गया कि नहीं देने हो तो आठ आने दो। नहीं देने है। तो कम से कम छह आने तो दे ही दो। नहीं तो हम नहीं बेचेंगे। जौहरी ने कहा - पत्थर ही तो है।चार आने कोई कम तो नहीं। उसने सोचा थोड़ी दूर चलने पर आवाज दे देगा। आगे चला गया। लेकिन आधा फरलांग चलने के बाद भी...

शिव और सती का विवाह in hindi

दक्ष प्रजापति की कई पुत्रियां थी। सभी पुत्रियां गुणवती थीं। फिर भी दक्ष के मन में संतोष नहीं था। वे चाहते थे उनके घर में एक ऐसी पुत्री का जन्म हो, जो सर्व शक्तिसंपन्न हो एवं सर्व विजयिनी हो। जिसके कारण दक्ष एक ऐसी हि पुत्री के लिए तप करने लगे। तप करतेकरते अधिक दिन बीत गए, तो भगवती आद्या ने प्रकट होकर कहा, मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूं। तुम किस कारण वश तप कर रहे हों? दक्ष नें तप करने का कारण बताय तो मां बोली मैं स्वय पुत्री रूप में तुम्हारे यहां जन्म धारण करूंगी। मेरा नाम होगा सती। मैं सती के रूप में जन्म लेकर अपनी लीलाओं का विस्तार करूंगी। फलतः भगवती आद्या ने सती रूप में दक्ष के यहां जन्म लिया। सती दक्ष की सभी पुत्रियों में सबसे अलौकिक थीं। सतीने बाल्य अवस्था में ही कई ऐसे अलौकिक आश्चर्य चलित करने वाले कार्य कर दिखाए थे, जिन्हें देखकर स्वयं दक्ष को भी विस्मयता होती रहती थी। जब सती विवाह योग्य होगई, तो दक्ष को उनके लिए वर की चिंता होने लगी। उन्होंने ब्रह्मा जी से इस विषय में परामर्श किया। ब्रह्मा जी ने कहा, सती आद्या का अवतार हैं। आद्या आदि शक्ति और शिव आदि पुरुष हैं। अतः सती के विव...

Tenali rama ke अपमान का बदला

तेनालीराम ने सुना था कि राजा कृष्णदेव राय बुद्धिमानों व गुणवानों का बड़ा आदर करते हैं। उसने सोचा, क्यों न उनके यहाँ जाकर भाग्य आजमाया जाए। लेकिन बिना किसी सिफारिश के राजा के पास जाना टेढ़ी खीर थी। वह किसी ऐसे अवसर की ताक में रहने लगा। जब उसकी भेंट किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से हो सके। इसी बीच तेनालीराम का विवाह दूर के नाते की एक लड़की मगम्मा से हो गया। एक वर्ष बाद उसके घर बेटा हुआ। इन्हीं दिनों राजा कृष्णदेव राय का राजगुरु मंगलगिरि नामक स्थान गया। वहाँ जाकर रामलिंग ने उसकी बड़ी सेवा की और अपनी समस्या कह सुनाई। राजगुरु बहुत चालाक था। उसने रामलिंग से खूब सेवा करवाई और लंबे-चौड़े वायदे करता रहा। रामलिंग अर्थात तेनालीराम ने उसकी बातों पर विश्वास कर लिया और राजगुरु को प्रसन्न रखने के लिए दिन-रात एक कर दिया। राजगुरु ऊपर से तो चिकनी-चुपड़ी बातें करता रहा, लेकिन मन-ही-मन तेनालीराम से जलने लगा। उसने सोचा कि इतना बुद्धिमान और विद्वान व्यक्ति राजा के दरबार में आ गया तो उसकी अपनी कीमत गिर जाएगी। पर जाते समय उसने वायदा किया-‘जब भी मुझे लगा कि अवसर उचित है, मैं राजा से तुम्हारा परिचय करवाने क...

chalak mahila ki kahani

एक दिन एक औरत गोल्फ खेल रही थी| जब उसने बॉल को हिट किया तो वह जंगल में चली गई| जब वह बॉल को खोजने गई तो उसे एक मेंढक मिला जो जाल में फंसा हुआ था| मेंढक ने उससे कहा - "अगर तुम मुझे इससे आजाद कर दोगी तो मैं तुम्हें तीन वरदान दूँगा| "महिला ने उसे आजाद कर दिया मेंढक ने कहा - "धन्यवाद, लेकिन तीन वरदानों में मेरी एक शर्त है जो भी तुम माँगोगी तुम्हारे पति को उससे दस गुना मिलेगा| महिला ने कहा - "ठीक है" उसने पहला वरदान मांगा कि मैं संसार की सबसे खुबसूरत स्त्री बनना चाहती हूँ| मेंढक ने उसे चेताया - "क्या तुम्हें पता है कि ये वरदान तुम्हारे पति को संसार का सबसे सुंदर व्यक्ति बना देगा| महिला बोली - "दैट्स ओके, क्योंकि मैं संसार की सबसे खुबसूरत स्त्री बन जाऊँगी और वो मुझे ही देखेगा!" मेंढक ने कहा - "तथास्तु" अपने दूसरे वरदान में उसने कहा कि मैं संसार की सबसे धनी महिला बनना चाहती हूँ| मेंढक ने कहा - "यह तुम्हारे पति को विश्व का सबसे धनी पुरुष बना देगा और वो तुमसे दस गुना पैसे वाला होगा |" ...

Tenali Rama ki अन्तिम इच्छा

समय के साथ-साथ राजा कॄष्णदेव राय की माता बहुत वॄद्ध हो गई थीं। एक बार वह बहुत बीमार पड गई। उन्हें लगा कि अब वे शीघ्र ही मर जाएँगी। उन्हें आम से बहुत था, इसलिए जीवन के अन्तिम दिनों में वे आम दान करना चाहती थीं। सो उन्होंने राजा से ब्राह्म्णों को आमों को दान करने की इच्छा प्रकट की। वह् समझती थी कि इस प्रकार दान करने से उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी। सो कुछ दिनों बाद राजा की माता अपनी अन्तिम इच्छा की पूर्ति किए बिना ही मॄत्यु को प्राप्त हो गईं। उनकी मॄत्यु के बाद राजा ने सभी विव्दान ब्राह्म्णों को बुलाया और अपनी माँ की अन्तिम अपूर्ण इच्छा के बारे में बताया। कुछ देर तक चुप रहने के पश्चात ब्राह्म्ण बोले,” यह तो बहुत ही बुरा हुआ महाराज, अन्तिम इच्छा के पूरा न होने की दशा में तो उन्हें मुक्ति ही नहीं मिल सकती। वे प्रेत योनि में भटकती रहेंगी। महाराज आपको उनकी आत्मा की शान्ति का उपाय करना चाहिये।” तब महाराज ने उनसे अपनी माता की अन्तिम इच्छा की पुर्ति का उपाय पूछा। ब्राह्म्ण बोले, “उनकी आत्मा की शांति के लिये आपको उनकी पुण्यतिथि पर सोने के आमों का दान करना पडेगा।” अतः राजा ने ...

भगवान शिव से हुई काल भैरव की उत्पत्ति

एक बार सुमेरु पर्वत पर बैठे हुए ब्रम्हाजी के पास जाकर देवताओं ने उनसे अविनाशी तत्व बताने का अनुरोध किया | शिवजी की माया से मोहित ब्रह्माजी उस तत्व को न जानते हुए भी इस प्रकार कहने लगे - मैं ही इस संसार को उत्पन्न करने वाला स्वयंभू, अजन्मा, एक मात्र ईश्वर , अनादी भक्ति, ब्रह्म घोर निरंजन आत्मा हूँ| मैं ही प्रवृति उर निवृति का मूलाधार , सर्वलीन पूर्ण ब्रह्म हूँ | ब्रह्मा जी ऐसा की पर मुनि मंडली में विद्यमान विष्णु जी ने उन्हें समझाते हुए कहा की मेरी आज्ञा से तो तुम सृष्टी के रचियता बने हो, मेरा अनादर करके तुम अपने प्रभुत्व की बात कैसे कर रहे हो ? इस प्रकार ब्रह्मा और विष्णु अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करने लगे और अपने पक्ष के समर्थन में शास्त्र वाक्य उद्घृत करने लगे| अंततः वेदों से पूछने का निर्णय हुआ तो स्वरुप धारण करके आये चारों वेदों ने क्रमशः अपना मत६ इस प्रकार प्रकट किया - ऋग्वेद- जिसके भीतर समस्त भूत निहित हैं तथा जिससे सब कुछ प्रवत्त होता है और जिसे परमात्व कहा जाता है, वह एक रूद्र रूप ही है | यजुर्वेद- जिसके द्वारा हम वेद भी प्रमाणित होते हैं तथा जो ईश्वर के संपूर्ण यज...

फनी कहानी इन हिंदी।

कवि डाकू एक कवि गरीबी से तंग आके डाकू बन गया . डकैती करने वो बैंक गया और जाके सबके ऊपर पिस्तौल तान दिया और बोला “अर्ज़ किया है … तकदीर में जो हैं , वोही मिलेगा तकदीर में जो है, वोही मिलेगा .. .. हैंड्स उप ! अपनी जगह से कोई नहीं हिलेगा !!” केशियर के पास जाके कहता है - “अपने कुछ ख़्वाब मेरी आँखों से निकाल लो अपने कुछ ख़्वाब मेरी आँखों से निकाल लो .. .. जो कुछ भी तुम्हारे पास है जल्दी से इस बैग में डाल दो !! ” जब वो बैंक लूट चूका था तो जाते जाते बोल के जाता है - “भुला दे मुझे , क्या जाता है तेरा भुला दे मुझे , क्या जाता है तेरा .. .. मैं गोली मार दूंगा जो किसी ने पीछा किया मेरा !!